बाबा रामदेव ने देश में कोरोना इलाज की आयुर्वेदिक दवा ‘कोरोनिल’ लांच की तो जहां लोगों मे खुशी की लहर दौड़ गई , वहीं सरकार से लेकर एक गुट ने इसका विरोध भी शुरू कर दिया। यहां तक कि बाबा रामदेव पर मुकदमे भी दर्ज करा दिये गयें। ऐसी स्थिति मे बाबा समर्थक भी आक्रोशित हैं और उन्होने सरकार व सिस्टम से सवाल करने शुरू कर दियें हैं।
कोरोना के इस महासंकट में पतंजलि ने जब से कोरोनिल लॉन्च की है अचानक भारत में मेडिकल जगरूकता का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। हर कोई पतंजलि से ढ़ेरों सवाल पूछ रहा है।
एक जागरूक समाज को प्रश्न करने भी चाहिये लेकिन हैरानी तब होती है जब यह जागृति केवल एक स्वदेशी कंपनी के विरुद्ध नकरात्मक माहौल बनाने में कार्य कर रही हो दूसरी फार्मा कंपनियों से यही सवाल नही किये जा रहें हैं।
1. फार्मा कम्पनियां सिप्ला, हेटेरो लैब्स ने जो एप्लीकेशन सरकार को दी है क्या उस पर covid-19 लिखा हुआ है
2.क्या रेमडेसिविर, फेवीपीरावीर कोरोना के उन मरीजो को ठीक कर सकेंगी जो वेंटिलेटर पर हैं
3.फार्मा कंपनियों ने फेबिफ्लू , कोविफोर और सिप्रेमी को लांच करने से पहले क्या कोई रिसर्च की है क्योंकि ctri.nic.in पर इनके डाक्यूमेंट्स क्यों नही अपलोड किए गए है । जबकि इसी साइट पर पतंजलि की कोरोनिल के सारे रिसर्च डाक्यूमेंट्स उपलब्ध हैं।
4.यह तीनों एलोपेथी दवाएं जब कोरोना को पूर्ण रूप से ठीक नही कर सकती तो इन दवाओं की कीमत इतनी ज्यादा क्यों रखी गयी है।
5.इन दवाओं को लेने से क्या-क्या साइड इफेक्ट्स होंगे।
6.अमेरिका की USFDA के रेकेमेडशन पर एलोपेथी दवाओं को भारत मे स्वीकृति मिल सकती है तो विश्व के सबसे बड़े आयुर्वेद के संस्थान द्वारा बताई गई दवा पर ही शंका क्यों
यह सवाल इन फार्मा कंपनियों से और सरकार से पूछे जाने चाहिए थे।
जब पतंजलि ने कोरोनिल के बारे में चर्चा शुरू की तो पतंजलि पर कुछ लोग अंग्रेजो के समय के बने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक कानूनों का सहारा लेकर केस दायर करने लगे। इसके साथ ही राजस्थान, पंजाब , महाराष्ट्र राज्यों की सरकारों ने ऐसे ही कानूनों की आड़ में पतंजलि की कोरोनिल को बैन कर दिया जबकि अभी आयुष मंत्रालय से कोरोनिल को स्वीकृति नही मिली है तो फिर बैन का क्या औचित्य है ।
पिछले 4 महीनों से जो दवाएं हॉस्पिटल में कोरोना के लिए दी जा रही है उनमें से एक भी दवा कोरोना की नही है। लेकिन कोरोना वॉरियर हमारे डॉक्टर अपने लंबे अनुभव के आधार पर इन दवाइयों को कारगर बनाने में सफल हो गए हैं।
जयपुर के एसएमएस अस्पताल ने यह कार्य सबसे पहले करके कई मरीजों को ठीक किया उसके बाद और राज्यों में नर्सेज ने अपने अनुभव के आधार पर पहले से प्रचलित दवाओं के जरिये ही कोरोना पीड़ितों को ठीक किया ।
अब जब बात एलोपैथिक के अनुभव की हो रही है तो आयुर्वेद के पास तो हज़ारो साल का महामारियों से लड़ने का अनुभव है। अश्वगंधा, गिलोय, तुलसी का भारत के सैकड़ों शास्त्रों में इनके लाभ और उपयोगिता का वर्णन है । गिलोय को अमृता कहा गया है । तुलसी को स्वास्थ्य के लिए उपयोगी माना गया है।
कोरोनिल इन तीनों जड़ी-बूटियों से मिलकर बना है और इसको बनाने वाले पूज्य स्वामी रामदेव जी और आचार्य जी के पास 25 वर्षों का योग व आयुर्वेद के जरिये करोड़ों लोगो को लाभ देने का अनुभव तो है ही साथ मे विश्व स्तरीय रिसर्च सेंटर है जिसमे 500 वैज्ञानिक कार्य करते है । इसी रिसर्च सेंटर ने पहले डेंगू के नाश के लिए डेंगुनिल दी जिसके लिए पहले कोरोनिल की तरह ही ना नुकुर कि गयी लेकिन अब इसको सही होने का प्रमाण देने वाले कई शोध पत्र आ चुके हैं ।
स्वामी जी और आचार्य जी के इतने लंबे अनुभव और गिलोय, अश्वगंधा, और तुलसी की औषधीय महत्ता और इनसे बने आयुर्वेदिक काढ़े को पीकर सेकड़ो लोगो द्वारा कोरोना को ठीक करने के ढेरों समाचार आये लेकिन फिर भी आयुर्वेदिक कोरोलिन को स्वीकृति नही मिली है ।
आइए देखते हैं कि क्या कारण हो सकते हैं -
1. कोरोनिल का सस्ता होना भी एक कारण हो सकता है कहाँ एलोपेथिक की एक गोली 100 रुपये की और लगभग 30-50 हज़ार का खर्चा । पतंजलि कोरोलिन मात्र 545 रुपये की है।
545 और 5000 के बीच का यह बड़ा अंतर बहुतेरे दवाई माफियाओं की बल्ले - बल्ले कर सकता है ।
2.आयुर्वेदिक कोरोनिल को लेने के लिए किसी बड़े अस्पताल के नामी डॉ की देखरेख की आवश्यकता नही पड़ेगी। पतंजलि चिकित्सालय की क्लीनिक पर बैठे आयुर्वेदिक डॉ की देखरेख में भी इसको लिया जा सकता है। 3.अस्पतालों के 10 हजार से लेकर एक लाख रूपये प्रति बेड प्रतिदिन के बड़े बिल कैसे बन पायेंगे?
साभार- सौरभ सिंह